उमरिया।- शिक्षक अपने छात्रों के भविष्य को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक बच्चो की सफलता के लिए सभी जतन करते है।प्रारंभ से लेकर विश्वविद्यालय तक, वे ही हैं जो ज्ञान प्रदान करते हैं और हमें हर महत्वपूर्ण विषयो के बारे में बताते सिखाते हैं। इसके अलावा, वे हमें नैतिक मूल्यों के बारे में भी सिखाते हैं बच्चो की सफलता शिक्षक की असली कमाई है।इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि शिक्षक हमारे व्यक्तित्व को बहुत मजबूत और अद्भुत बनाते हैं।शिक्षकों के बिना सभ्य समाज की कल्पना नही की जा सकती।अपराध मुक्त समाज केवल सरकार का नही अपितु हमारे संस्कारो का भी विषय है।मातापिता के बाद एक मात्र शिक्षक ही है जो अपने छात्रों को सफलता की उड़ान हेतु पंख प्रदान करता है। छात्रों की सफलता हेतु अपना जीवन खपा देता है।शिक्षक की खुशी सफलता उसके जीवन का उद्देश्य छात्रों को सफल बनाना ही होता है।
उमरिया जिला मुख्यालय अस्पताल में बी.एम.ओ. के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे डॉ विश्व मंगल सिंह चंदेल जी ने कहा कि , बच्चो को अपने भविष्य की चिंता नही होती उनकी चिंता उनके शिक्षक करते है। बच्चे वही करना चाहते है जो उन्हें अच्छा लगता है और शिक्षक उनसे वही करवाते है जो बच्चो के भविष्य को स्वर्णिम बनाये।ऐसे में बच्चो को डांटना डराना भय पैदा किये बिना बच्चो को पढ़ना उनकी गलत आदत छुड़वाना कठिन होता है। शिक्षक की डांट बच्चो के भविष्य का अमृत है। शिक्षक की डाट में बच्चो का स्वर्णिम भविष्य निहित है। अनुशासन समय का ध्यान रखना समय पर उठना जागना पढ़ने सहित दिनचार्य ठीक कराने हेतु बच्चो पर शख़्ति जरूरी है।अभिभावकों को चाहिये कि शिक्षक को इस हेतु विश्वाश में ले ताकि वह जरूरत अनुरूप बच्चो पर कड़ाई कर सकें। वर्तमान दौर में देखा जाता है कि शिक्षक बच्चो को सुधारने हेतु कदम उठाता है तो बच्चे के मातापिता शिक्षक से ऐसा वर्ताव ब्योहार करते है जो बच्चे की गलती को प्रोत्साहित करता है।माता-पिता, के साथ शिक्षक छात्रों के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।वास्तव में, बच्चे के चरित्र को आकार देने में शिक्षक की भूमिका अमूल्य है। उनके शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों के दौरान आप उनमें जो मूल्य भरते हैं, वे उनके जागरूक वयस्क बनने की नींव रखेंगे। माता-पिता की भागीदारी उनकी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने से कहीं ज़्यादा है; यह एक ऐसा पोषण देने वाला माहौल बनाने हेतु जहाँ वे दयालु, करुणामय और ज़िम्मेदार बनना सीख सकें। जो अपने अधिकारों से ज्यादा अपने कर्तब्यों को प्राथमिकता दे।शिक्षक के द्वारा बच्चो को डांटने पर अभिभावकों का ब्योहार शिक्षक के प्रति नकारात्मक हो जाता है। जबकि डॉट में भविष्य की उन्नति सम्रद्धि छिपी होती है। बच्चो की गलत आदत उन्हें असफल बना देती है। अनुशासन केवल समझाने से नही आता इसके लिए भय पैदा करना पड़ता है। अनुसाशन विहीन बच्चा अच्छा और सफल नागरिक नही बन सकता ऐसे में अभिभावकों को चाहिये कि बच्चो के द्वारा शिक्षकों की कीगई छोटी मोटी कंप्लेन जैसे डांटना आदि पर ध्यान न दे बच्चो को समझाए ताकि बच्चे अपनी भूल सुधार करे। बच्चो की बताई बातों पर उग्र होकर शिक्षको से गलत वर्ताव न करें। जो माता पिता बच्चो की डांट पर शिक्षकों/आचार्यों पर गुस्सा करते है निश्चितरूप से वह खुलेरूप में बच्चो की गलती का समर्थन कर रहे है। विचार करे आप जब छोटे थे स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते थे तब आपको डॉट पड़ती थी या नही अगर पड़ती थी तो उसमें आपका हित समाहित था या नही।